यस पटक अली भिन्न खालको प्रस्तुती साभार गरेको छु । आशा छ, यहाँहरू सबैलाइ मन पर्ने नै छ । -युवा आवाज
ऊपर पहाड़ और नीचे झील, जंगलों के रूप में कुदरत ने नेपाल पर जम कर रहमत बरसाई है। काठमांडू से पोखरा (करीब 200 किलोमीटर) और पोखरा से चितवन की यात्रा में पूरे रास्तेन हमें इस कुदरती खूबसूरती का नजारा देखने को मिला।
पोखरा राजधानी काठमांडू की तुलना में काफी छोटा शहर है। रौनक भरे काठमांडू से एकदम अलग भी- शांत। शाम होते ही शहर सन्नाटे में खोने लगता है। रात होने पर डांस क्लबों में बजने वाले गाने यह सन्नाटा तोड़ते हैं। तड़के पर्यटकों का काफिला बस एक ही रास्ते पर बढ़ता दिखता है, जो अन्ऩपूर्णा रेंज की ओर जाता है। यहां ऊंचे पहाड़ों से सूर्योदय का नजारा देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है। मौसम साफ रहा और सूर्य पर बादलों की काली छाया नहीं पड़ी तो नजदीक से उगते सूरज को देखने का अनुभव वाकई मजेदार होता है। हालांकि बारिश, कोहरे और बादलों की वजह से हम वहां पहुंच कर भी यह मजा उठाने से वंचित रह गए।
ट्रेकिंग, पाराग्ला इडिंग का शौक रखने वालों के लिए तो पोखरा में आनंद ही आनंद है। अगर आपको इससे डर लगता है तो फेवा लेक में बोटिंग का मजा तो ले ही सकते हैं। बोटिंग करते हुए झील के बीच में वाराही देवी के मंदिर पहुंच जाईए। वैसे पूरे नेपाल में जगह-जगह कुदरती खूबसूरती के बीच देवी-देवताओं ने अपना स्थान बनाया हुआ है। ऊंची पहाड़ी पर बसा मनोकामना मंदिर हो या फिर काठमांडू घाटी का पशुपति नाथ मंदिर। ये पर्यटकों को देवी-देवता के प्रति आस्था जताने के साथ कुदरती खूबसूरती का भी पूरा लुत्फ उठाने का भरपूर मौका देते हैं।
काठमांडू और पोखरा के बीचोबीच सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनोकामना मंदिर पहुंचने के लिए करीब 10 मिनट की केबल कार की सवारी के दौरान प्रकृति की खूबसूरती का जो नजारा देखने को मिला, वह अपने आप में अद्भुत था। नीचे त्रिशुली नदी, ऊपर पहाड़ और साथ सफर करने का अहसास दिलाते खूबसूरत पेड़...। हमारे गाइड बसंत ने बताया कि जनकपुर के जानकी मंदिर और लुंबिनी के बौद्ध मठों के इर्द-गिर्द भी कुदरती खूबसूरती की खूब बहार देखने को मिलती है।
नेपाल को अपने चितवन नेशनल पार्क पर भी गर्व है। 932 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस पार्क में पर्यटक दुर्लभ जानवर देखने के लिए आते हैं। हमने भी रॉयल बंगाल टाइगर देखने की हसरत लिए करीब 2 घंटे हाथी पर बैठ कर जंगल की खाक छानी। लेकिन हमें राइनोसेरस देख कर ही संतोष करना पड़ा। महावत ने बताया कि नसीब अच्छा होने पर टाइगर दिख जाता है।
पर, काठमांडू में रहते हुए नाइट लाइफ का मजा लेने के लिए नसीब अच्छा होने की शर्त कतई नहीं है। थमेल में कैसिनो, बार, पब, क्लब, रेस्तराओं की भरमार है। काठमांडू के दूसरे हिस्सों में भी इनकी कमी नहीं है। वीकेंड पर तो यहां जबरदस्त भीड़ रहती है। पोखरा में भी कुछ ऐसा ही हाल दिखा। सरकार की कमाई का यह बड़ा जरिया है।
वैसे, छोटे से नेपाल में पर्यटन की बड़ी संभावनाएं दिखीं। राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही सरकार ने भी इसे समझा है और पहली बार 2011 को नेपाल पर्यटन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। सरकार इस साल 10 लाख पर्यटकों की मेजबानी करना चाहती है। पिछले साल 4.5 लाख पर्यटक नेपाल पधारे थे। इसमें एक लाख भारतीय थे। पर चीन से भी खूब पर्यटक अब नेपाल पहुंच रहे हैं। चीन ने एशिया के किसी देश को अपने असर से अछूता नहीं छोड़ा है। चाईनीज रेस्तररां और सामान बाजार में खूब दिखाई देते हैं। शायद बढ़ते व्यापार का ही असर है कि चीनी पर्यटकों की संख्या भी नेपाल में सबसे ज्यादा बढ़ रही है। पिछले साल इनकी संख्या 37 फीसदी बढ़ कर 25000 पार कर गई। लेकिन अभी सरकार को बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। शायद अगली नेपाल यात्रा तक यह कमी दूर हो चुकी होगी।
फोटो: मनोकामना मंदिर जाते हुए केबल कार से कैमरे में कैद खूबसूरत कुदरती नजारा।
नमस्ते ! नेपाल की धरती पर उतरते ही जिस अंदाज में यह पहला शब्द सुनने को मिला, वह यह समझाने के लिए काफी था कि यहां के लोग मेहमाननवाजी में हम भारतीयों से कहीं कम नहीं होंगे। चार दिन के प्रवास में हर जगह हमारी यह धारणा सही ही साबित हुई।
नेपाल पर कुदरत की मेहरबानी की एक झलक तो 10000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ते हवाई जहाज में बैठे-बैठे ही मिल चुकी थी। नीले आकाश की छुअन का अहसास करने को बेताब लगते ऊंचे पहाड़ों की चोटी को निहराने का अनुभव बड़ा ही मजेदार था। तभी तो नेपाली एयरलाइंस कंपनियों ने पर्यटकों को खास कर इस अनुभव का आनंद दिलाने के लिए ‘माउंटेन फ्लाइट’ नाम से विशेष सेवा शुरू कर रखी है।समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर बसे काठमांडू से उड़ान भर कर विमान लोगों को करीब 8500 मीटर की ऊंचाई तक ले जाते हैं और इस बीच पड़ने वाली दर्जन भर से ज्यादा पर्वत चोटियों के नजारे दिखाते हैं। साथ ही, इन चोटियों के बारे में दिलचस्प जानकारी भी देते हैं, पर यह मौसम की मेहरबानी के बिना संभव नहीं होगा और यह मेहरबानी हम पर नहीं हुई। हम दो दिन कोशिश करके भी ‘माउंटेन फ्लाइट’ का मजा नहीं ले सके। दोनों दिन कोहरे की वजह से फ्लाइट रद हो गई और हम तीन घंटे बर्बाद कर दूसरे खूबसूरत पड़ाव के लिए निकल पड़े।
नेपाल पर कुदरत की मेहरबानी की एक झलक तो 10000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ते हवाई जहाज में बैठे-बैठे ही मिल चुकी थी। नीले आकाश की छुअन का अहसास करने को बेताब लगते ऊंचे पहाड़ों की चोटी को निहराने का अनुभव बड़ा ही मजेदार था। तभी तो नेपाली एयरलाइंस कंपनियों ने पर्यटकों को खास कर इस अनुभव का आनंद दिलाने के लिए ‘माउंटेन फ्लाइट’ नाम से विशेष सेवा शुरू कर रखी है।समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर बसे काठमांडू से उड़ान भर कर विमान लोगों को करीब 8500 मीटर की ऊंचाई तक ले जाते हैं और इस बीच पड़ने वाली दर्जन भर से ज्यादा पर्वत चोटियों के नजारे दिखाते हैं। साथ ही, इन चोटियों के बारे में दिलचस्प जानकारी भी देते हैं, पर यह मौसम की मेहरबानी के बिना संभव नहीं होगा और यह मेहरबानी हम पर नहीं हुई। हम दो दिन कोशिश करके भी ‘माउंटेन फ्लाइट’ का मजा नहीं ले सके। दोनों दिन कोहरे की वजह से फ्लाइट रद हो गई और हम तीन घंटे बर्बाद कर दूसरे खूबसूरत पड़ाव के लिए निकल पड़े।
ऊपर पहाड़ और नीचे झील, जंगलों के रूप में कुदरत ने नेपाल पर जम कर रहमत बरसाई है। काठमांडू से पोखरा (करीब 200 किलोमीटर) और पोखरा से चितवन की यात्रा में पूरे रास्तेन हमें इस कुदरती खूबसूरती का नजारा देखने को मिला।
पोखरा राजधानी काठमांडू की तुलना में काफी छोटा शहर है। रौनक भरे काठमांडू से एकदम अलग भी- शांत। शाम होते ही शहर सन्नाटे में खोने लगता है। रात होने पर डांस क्लबों में बजने वाले गाने यह सन्नाटा तोड़ते हैं। तड़के पर्यटकों का काफिला बस एक ही रास्ते पर बढ़ता दिखता है, जो अन्ऩपूर्णा रेंज की ओर जाता है। यहां ऊंचे पहाड़ों से सूर्योदय का नजारा देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है। मौसम साफ रहा और सूर्य पर बादलों की काली छाया नहीं पड़ी तो नजदीक से उगते सूरज को देखने का अनुभव वाकई मजेदार होता है। हालांकि बारिश, कोहरे और बादलों की वजह से हम वहां पहुंच कर भी यह मजा उठाने से वंचित रह गए।
ट्रेकिंग, पाराग्ला इडिंग का शौक रखने वालों के लिए तो पोखरा में आनंद ही आनंद है। अगर आपको इससे डर लगता है तो फेवा लेक में बोटिंग का मजा तो ले ही सकते हैं। बोटिंग करते हुए झील के बीच में वाराही देवी के मंदिर पहुंच जाईए। वैसे पूरे नेपाल में जगह-जगह कुदरती खूबसूरती के बीच देवी-देवताओं ने अपना स्थान बनाया हुआ है। ऊंची पहाड़ी पर बसा मनोकामना मंदिर हो या फिर काठमांडू घाटी का पशुपति नाथ मंदिर। ये पर्यटकों को देवी-देवता के प्रति आस्था जताने के साथ कुदरती खूबसूरती का भी पूरा लुत्फ उठाने का भरपूर मौका देते हैं।
काठमांडू और पोखरा के बीचोबीच सैकड़ों मीटर की ऊंचाई पर स्थित मनोकामना मंदिर पहुंचने के लिए करीब 10 मिनट की केबल कार की सवारी के दौरान प्रकृति की खूबसूरती का जो नजारा देखने को मिला, वह अपने आप में अद्भुत था। नीचे त्रिशुली नदी, ऊपर पहाड़ और साथ सफर करने का अहसास दिलाते खूबसूरत पेड़...। हमारे गाइड बसंत ने बताया कि जनकपुर के जानकी मंदिर और लुंबिनी के बौद्ध मठों के इर्द-गिर्द भी कुदरती खूबसूरती की खूब बहार देखने को मिलती है।
नेपाल को अपने चितवन नेशनल पार्क पर भी गर्व है। 932 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस पार्क में पर्यटक दुर्लभ जानवर देखने के लिए आते हैं। हमने भी रॉयल बंगाल टाइगर देखने की हसरत लिए करीब 2 घंटे हाथी पर बैठ कर जंगल की खाक छानी। लेकिन हमें राइनोसेरस देख कर ही संतोष करना पड़ा। महावत ने बताया कि नसीब अच्छा होने पर टाइगर दिख जाता है।
पर, काठमांडू में रहते हुए नाइट लाइफ का मजा लेने के लिए नसीब अच्छा होने की शर्त कतई नहीं है। थमेल में कैसिनो, बार, पब, क्लब, रेस्तराओं की भरमार है। काठमांडू के दूसरे हिस्सों में भी इनकी कमी नहीं है। वीकेंड पर तो यहां जबरदस्त भीड़ रहती है। पोखरा में भी कुछ ऐसा ही हाल दिखा। सरकार की कमाई का यह बड़ा जरिया है।
वैसे, छोटे से नेपाल में पर्यटन की बड़ी संभावनाएं दिखीं। राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रही सरकार ने भी इसे समझा है और पहली बार 2011 को नेपाल पर्यटन वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। सरकार इस साल 10 लाख पर्यटकों की मेजबानी करना चाहती है। पिछले साल 4.5 लाख पर्यटक नेपाल पधारे थे। इसमें एक लाख भारतीय थे। पर चीन से भी खूब पर्यटक अब नेपाल पहुंच रहे हैं। चीन ने एशिया के किसी देश को अपने असर से अछूता नहीं छोड़ा है। चाईनीज रेस्तररां और सामान बाजार में खूब दिखाई देते हैं। शायद बढ़ते व्यापार का ही असर है कि चीनी पर्यटकों की संख्या भी नेपाल में सबसे ज्यादा बढ़ रही है। पिछले साल इनकी संख्या 37 फीसदी बढ़ कर 25000 पार कर गई। लेकिन अभी सरकार को बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। शायद अगली नेपाल यात्रा तक यह कमी दूर हो चुकी होगी।
फोटो: मनोकामना मंदिर जाते हुए केबल कार से कैमरे में कैद खूबसूरत कुदरती नजारा।
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आफ्ना सल्लाह र सुझावका लागी समय खर्चिनु हुने सबै प्रति आभार छु ।
Thank you for taking your valuable time to Read or Comment on this blog.
धन्यवाद ।